Monday, February 16, 2009

सु-राज सम्बन्धि सुझाव

1. कार्य व्यवस्था एवं प्रणाली में व्यापक सुधार
2. सरल व्यवस्था
3. नियमों की समीक्षा कर उन्हें परिस्थिति सोपेक्ष, सरल तथा आसान बनाना
4. पारदर्षिता व्यवस्थापित करना
5. उत्तरदाइत्वता को कड़ाई से लागू करना
6. प्रभावशाली पुनर्वलोकन एवं मुल्यांकण व्यवस्था स्थापित करना
7. साप्ताहिक व मासिक सामाइकी रिपोर्टों की सरल व सुक्षम व्यवस्था स्थापित करना
8. आवश्यक्तानुसार कार्य शुध्दि एवं संशोधन करने हेतु प्रभावशाली प्रक्रम बनाना
9. कार्यकुशलता व निष्कृयता में अन्तर कर पारितोषण व दण्ड नीति का कड़ाई से अनुपालन करना
10. प्रभावशाली लोक शिकायत निवारण प्रकरण लागू करना
11. पुलिस कार्य प्रणाली में व्यापक सुधारकर आम जनता का विश्वास जीतना
12. सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र से सम्बन्धित भरोसेमन्द आंकड़ा-आधार तैयार कर आवश्यक्ता-आधारित परियोजनाओं का क्रियान्वयन करना

सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक सुधार के मुख्य मद

1. छुआछूत उन्मुलन
2. अणु-कुपोषण उन्मुलन
3. बाल-विवाह प्रथा का उन्मुलन
4. नियोजित-परिवार प्रथा को प्रोत्साहन देना
5. पारिवारिक संस्था व मुल्यों को सुदृढ़ करना
6. स्थानीय सांस्कृति व पौराणिक धरोहर की रक्षा एवं सुदृढ़ता
7. स्थानीय कला, हस्तकला, लाभदायक रिती-रिवाजों और गायकी इत्यादि को प्रोत्साहन देना
8. व्यक्तिगत तथा स्थानिक स्वच्छता के बारे जागरूकता लाकर अणुरहित वातावरण बनाने केलिए प्रोत्साहित करना
9. खाद्य प्रसंसकरण उद्योगों सम्बन्धि संरचना को सुदृढ़ करना
10. टिकाउ ढंग से खनिज-दोहन करना
11. पूर्ण पन-बीजली क्षमता का शीघ्र अति शीघ्र दोहन करना
12. जड़ी-बुटी उद्योग सम्बन्धि संरचना सुदृढ़ करना
13. इको-टुरिज्म को विशेष प्रोत्साहन देकर रोजगार के अवसर पैदा करना
14. उपयुक्त कृषि प्रक्रिया प्रोत्साहित कर भू-उत्पादक्ता बढ़ाना
15. सार्वजनिक इकाइयों की कार्य प्रणाली में व्यापक सुधार कर राज्य के लिए आय का साधन बनाना
16. सड़क-रेल-हवाई सम्बन्धि संरचना को सुदृढ़ करना
17. शौर व वायु जैसी पुनर्विकास-योग्य उर्जा स्त्रोतों सम्बन्धि संरचना का विकास करना
18. कृषि व बागवानी उत्पादों की दोहन प्रणाली एवं संरचना में सुधार कर क्षय को न्युनतम-स्तर तक लाना

धर्मांतरण के संदर्भ में गाँधी जी द्वारा महत्वपूर्ण कथन-

”मैने भारतवर्ष के चारों कोनो की यात्राओं के दौरान भारतीय इसाईओं को अपने जन्म/ पैत्रिक धर्म/ पैत्रिक पहनावे के बारे शर्मिंदगी अनुभव करते हुए देखा है। एँगलो-इण्डियनों द्वारा युरोपियों की नकल करना तो बुरा है ही, लेकिन धर्माँतरणित भारतीयों द्वारा ऐसा करना अपने देश और धर्म के प्रति हिंसक है।

यँग इण्डिया: 23 अप्रेल, 1931
”एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का धर्माँतरण करने में मैं विश्वास नहीं रखता। किसी दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने की कभी भी कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह न करके, हर एक धर्म के सत्य में विश्वास व उनका आदर करना है। यही सच्ची विनम्रता है।“
“मेरा यह मानना है कि मानवीय कार्यों की आड़ में धर्माँतरण करने को अस्वस्थ कहना, न्युनतम टिप्पणी है। लोग यहाँ इसका विरोध करते हैं। धर्म एक व्यकिगत व गहन भावना होती है, जिसका सम्बन्ध आत्मा से होता है। यदि किसी इसाई डाक्टर ने मेरी बिमारी का इलाज किया हो तो न तो इसके लिए मुझे अपना धर्म बदलने की जरूरत है और न ही वह इसाई डाक्टर मुझ से इस प्रकार से धर्माँतरण की उमीद ही रखे।“
हरिजन: 5 नवम्बर, 1935
यदि मेरे पास कानून बनाने की शक्ति हो तो मैं धर्माँतरण को बिल्कुल बन्द कर दूँ। हिन्दू परिवार में इसाई प्रचारक के प्रवेश होने पर वह परिवार बिखर जाता है जिसके प्रतीक पहनावे/ शिष्टाचार/ भाषा/ खानपान में बदलाव आना होते हैं।

हरिजन: 30 जनवरी, 1937
भारतवर्ष या दूसरी जगहों पर जिस प्रकार से धर्माँतरण किया जा रहा है उससे समझौता करना मेरे लिये असम्भव है। यह एक भूल है जो विश्व शाँती की राह में बहुत बड़ी रुकावट पैदा कर रही है। इसाई एक हिन्दू को इसाई क्यों बनाना चाहता है। वह (इसाई) हिन्दू की अच्छाई और आस्तिक्ता से संतुष्ट क्यों नहीं होता।
हरिजन: 13 मार्च, 1937
भले ही इसाई आजकल यह न कह रहे हों कि हिन्दू धर्म असत्य है, लेकिन अपने दिल में यह भावना अवश्य रखते हैं कि हिन्दू धर्म एक भूल है और उनका विश्वास है कि इसाई ही वास्तविक धर्म है। जैसा कि प्रतीत होता है, इसाईयों क बर्तमान में यह प्रयत्न है कि हिन्दू धर्म को जड़ से उखाड़ कर किसी दूसरे धर्म को प्रतिस्थापित कर दिया जाय।